Wednesday, November 28, 2018

भूखा बटुक

भूखा बटुक, जो लब लबाकर दौड़े,
और फिर लताड़ा हुआ हो भाग खड़ा।
कभी दौड़े टंग टनाते दूध के डिब्बे के पीछे,
तोह कभी पाता है खुशबु नमकपारे के थैली के नीचे।
और फिर यह जीभ भी एक जंतु है,
परन्तु देखे तोह सिर्फ अपने नाक के सहारे।
सो भूखा बटुक भागे,
नाक फुलाकर,
जीभ फैलाकर,
स्वाद का मीठा गीत गाए। 
कुछ पत्थर थे, कुछ गालियां थी, 
और दुनिया भर की धूप।
बस समय समय की बात है बंधु,
क्योंकि कभी छाव भी थी, कभी रेत भी,
और कभी ताज़े दूध के दो घूट।




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