वह हल्की सी बारिश, और धीमी पवन।
जहां झोका बने कृष्ण, और बूंद बने अर्जुन।
वह कभी पत्तों के नीचे विश्राम करते हैं,
वरना महक लगी, तो मिट्टी से ही लिपट जाते हैं।
जहां झोका बने कृष्ण, और बूंद बने अर्जुन।
वह कभी पत्तों के नीचे विश्राम करते हैं,
वरना महक लगी, तो मिट्टी से ही लिपट जाते हैं।
चाहे, तोह मेरे केश में छिप सकते,
सर्दी का तोह मालूम नहीं,
पर जब तक गर्माहट है, तब तक तो राहत हैं।
सर्दी का तोह मालूम नहीं,
पर जब तक गर्माहट है, तब तक तो राहत हैं।
बादल का गुड़गुड़ाना कोई तांडव नहीं,
पर लगता है किसी असमंजस में हैं।
सूरच पीछे किसी भय से नहीं,
पर बीच में कहीं पड़ना, उसकी आदत नहीं है।
पर लगता है किसी असमंजस में हैं।
सूरच पीछे किसी भय से नहीं,
पर बीच में कहीं पड़ना, उसकी आदत नहीं है।
मेरी कोहनी और घुटने रंग गए,
उस रंग में, जो रेंगने से रिसता है।
फिर चंद पल बरगद कि छाव में,
जहां तलवों के नीचे हर दाना पिस्ता हैं।
उस रंग में, जो रेंगने से रिसता है।
फिर चंद पल बरगद कि छाव में,
जहां तलवों के नीचे हर दाना पिस्ता हैं।
घर तोह कुछ मिनटों की दूरी पर है,
जिधर नरम कंबल करेगा तन को दीवाना,
मगर कुछ बात और कर लू मै इन बूंदों से,
इससे पहले कि इन्द्र हो स्वर्ग को रवाना।
जिधर नरम कंबल करेगा तन को दीवाना,
मगर कुछ बात और कर लू मै इन बूंदों से,
इससे पहले कि इन्द्र हो स्वर्ग को रवाना।
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