Friday, December 14, 2018

दुविधा की विद्या

दुविधा की विद्या की तालीम पाकर,

चला दिखाने जलवे उस विद्यालय में,

सुविधा जहां पर गुमसुम बैठे थीं।

अटेंडेंस लो तोह कुछ बोले ही ना,

काम भी कुछ करके नहीं दिखाती, 

अकड़ के पीछे छिपता उसका डर,

सो अन्दर ही अन्दर अपने आंसू चाटती थी।

ब्रेक आया खेलने का,

सुविधा का तो डब्बा भी नहीं खुला था।

दुविधा के दर्द का था जादू,

के खाने में ज़्यादा डिमांड नहीं होती थी।।

ठंडी आह भरी और बैठ गया सुविधा के पास,

दुर्गंध दर्द की पास से ही महसूस होती थी।

स्नेह से लगाया जो गले,

मायूसी की अपच आख़िर में उगल दिया था।।

ना दुविधा का सुख उसके पास,

ना ही अशुभ सुविधाएं मेरे झोले में।

भूख हम दोनों को तड़पाती भरपूर,

सो एक दूसरे का निवाला खाकर शांत किया था।।


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