Friday, December 7, 2018

लक्ष्मी के चरण

तुलसी की शरण में लक्ष्मी के चरण,
वहीं शालिग्राम आज तन्हा बैठा था।
दीपावली को बीते सप्ताह हो चुकीं थीं,
सो रौनक का दीप अब धूप में बदल चुका था।
लक्ष्मी के चरण कोमल कागज़ की तरह,
पत्तों और टहनियो के बीच में झूले थे,
हुआ स्नान संग गंगाजल के,
देखा तोह आज पत्थर मुरझाया हुआ था।
शालिग्राम देखे शिवलिंग की ओर,
शिवलिंग देखे सूर्य की ओर,
सूर्य देखे ब्रम्हांड की ओर,
और ब्रम्हा देखे उन सब की ओर।
लक्ष्मी कृपा से लाल हो उठी वह तुलसी, 
जिस पर किसी ने गुलाब ना चड़ाया,
मंथन परिश्रम कि क्या आवश्यकता,
अमृत अब तुलसी के पत्तों में बस आया।
गए नरेश पश्चाताप करके,
और हुआ था कुछ का सर्वनाश,
समय के चक्र का संहार करके,
इतिहास के सहारे अब पुराण हस्ता था।
-Shashank Jakhmola 

No comments:

Post a Comment